नारी इंसान है सामान नहीं
“I’m writing this blog post to support Amnesty International’s #KnowYourRights campaign at BlogAdda.
एक
समय भारत में बनी एक फिल्म, नाम तो मुझे नहीं
पता पर शायद 1950 या 60 के दशक में बनी का ये गाना बड़ा मशहूर हुआ था,...” औरत ने
जन्म दिया मर्दों को; मर्दों ने उसे बाजार दिया...” और ये एक लाइन ही भारत जैसे
देश में औरत की सामाजिक हैसियत या रुतबे की पोल खोलती है. तब भी औरत हाशिये पर
खड़ी थी और आज भी वही खड़ी है. हमारे समाज
में नारी माँ के रूप में तो पूज्यनीय है पर नारी एक इंसान के रूप में कोई महत्त्व
नहीं रखती. इसका साफ़-साफ़ कारण एक ही है जो उसे इंसान के रूप में स्थापित नहीं
करता, और वो है नारी के प्रति पुरुष का नजरिया.
भारत क्या पूरी दुनिया में नारी को दोयम दर्जे का समझा जाता है और उसे
पुरुष के साथ कदम से कदम मिलकर चलने की वास्तविक अर्थों में आजादी आज तक नहीं
मिली, वह पुरुष की परछाईं की तरह पीछे चले तभी उसे सम्मान के लायक समझा जाता है.
वास्तव
में नारी आज भी इंसान से ज्यादा सामान समझी जाती है. अब सामान केवल उपयोग में ही
लाया जाता है और अनुपयोगी होने पर फेंक देने के अलावा उसका कुछ नहीं किया जा सकता.
यदि ऐसे में नारी के साथ sexual violence होता है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात
नहीं. नारी एक सामान से अधिक कुछ नहीं है तो जैसा कि उसे समझ और माना गया है- तो
ऐसे में उसके साथ sexual violence हो रहा है और जिस तरह से graph ऊपर जा रहा है
उससे वो अपने आप को अपने घर में भी महफूज नहीं पा रही है तो इसे रोकना अब जरुरी हो
गया है.
जैसा
की सब जानते हैं पिछले 3-4 सालों से महिलाओं के साथ sexual violence के cases
ज्यादा हो रहे हैं और उनकी ख़बरें भी प्रिंट और digital media में काफी coverage के
साथ छपने और दिखाई जाने लगी हैं तो जरुरी हो जाता है कि ऐसी कोई भी खबर भेदभाव के
छपी या दिखाई जाएँ. कुछ कारणों से ये अब बेहद जरुरी है कि ये news जरुर दिखाई या
छपी जाये.
· *
भारत में महिलाओं के प्रति होने वाले sexual violence के लिए लोगों
में जागरूकता जागनी चाहिए और जगाई जानी चाहिए. जब तक लोगों के नारी के प्रति
संवेदना नहीं जागेगी तब तक sexual violence की शर्मसार कर देने वाली घटनाएँ नहीं
रुकेंगी.
· *
बलात्कार के लिए पुरुष दोषी होता है और उसका खामियाजा अक्सर नहीं
भुगतती है क्योंकि उसके लिए उसे ही दोषी माना जाता है और जब लोग ये जान लेते हैं
तो उसकी जिंदगी को जहन्नुम बनाने में ये समाज देर नहीं लगाता. एक तो वह मानसिक और
शारीरिक रूप से इस कदर घायल हो चुकी होती है कि उसे अपनी समस्या का हल आत्महत्या
के रूप में ही नजर आता है. ये भारतीय समाज का वो शर्मनाक पहलू है जिसकी अब दुनिया
को भी खबर होने लगी है. और भारतीय समाज अपने दोगलेपन को छुपाने के लिए अब अपनी
अच्छी छवि बनाना चाहता है पर उसके इस दोगलेपन को उजागर करने के लिए जरुरी है कि इस
तरह के sexual violence की reporting जरुर होना चाहिए. ताकि लोगों के सामने सच आये
और लोगों की सोच भी उस पीड़ित के प्रति सहानुभूतिपूर्ण हो- जिससे वो फिर से एक सम्मान
भरी जिंदगी की ओर लौट सके और सामान्य जीवन जी सके.
· *
नारी पहले एक इंसान है और उसे एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में समाज
में स्थान मिलना चाहिए और ये तभी संभव है जब उसके प्रति सम्मान और संवेदना की
भावना समाज में पनपे. ये तभी सम्भव है जब इस तरह के sexual violence की इंसानियत
को शर्मसार करने वाले incident हों तब जो लोग बेहद casual सी reaction देते हैं, उन्हें
रोका जाये और ऐसे लोंगों के खिलाफ बकायदा लामबंद होना जरुरी है. तभी लोग इस तरह के
violence की intensity को समझ पाएंगे और उनकी संवेदना को झकझोरना बेहद आवश्यक है.
ऐसे लोगों को ये समझ आना चाहिए कि जिस सतही ढंग से वे इस तरह की घटनाओं को ले रहे
हैं उस तरह का शिकार उनका भी कोई अपना हो सकता है. जब तक लोगों के अंदर इस तरह की
सोच नहीं जागेगी, हमारे देश में नारी का अपमान sexual violence की शर्मनाक घटनाओं
के रूप में होता रहेगा.
अब वास्तव में समय आ गया है कि नारी के प्रति सदियों पुरानी सोच को लोग बदलें और ये काम print और digital
media के माध्यम से बेहतर ढंग से हो सकता है. क्या... आपको नहीं लगता मै शै कह रही
हूँ.
केवल इतना ही मुझे कहना है.
(वीणा सेठी).
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-12-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2200 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
bhut hi sundar likha hai apne
जवाब देंहटाएंLooking to publish Online Books, in Ebook and paperback version, publish book with best
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