रविवार, 15 नवंबर 2015

मुक्तक '

मुक्तक  

 ''माँ ''

माँ तुम जहाँ भी होगी खुश होगी;
पर जब भी मुझे तुम्हारी याद आती है

तुम्हारा दुपट्टा कसकर लपेट लेती हूँ.
और तुम्हे अपने और करीब पाती हूँ.
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क्रांति

 
मानवता किताबों की बात न रह जाये;
इन्सान इन्सान से न कभी मुँह चुराये.
बस हृदय गर परिवर्तन पर उतर आये;
मानवता के लिए'क्रांति' का बिगुल बज जाये.
 
 
 वीणा सेठी

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