मुक्तक
''माँ ''
माँ तुम जहाँ भी होगी खुश होगी;
पर जब भी मुझे तुम्हारी याद आती है
तुम्हारा दुपट्टा कसकर लपेट लेती हूँ.
और तुम्हे अपने और करीब पाती हूँ.
माँ तुम जहाँ भी होगी खुश होगी;
पर जब भी मुझे तुम्हारी याद आती है
तुम्हारा दुपट्टा कसकर लपेट लेती हूँ.
और तुम्हे अपने और करीब पाती हूँ.
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क्रांति
मानवता किताबों की बात न रह जाये;
इन्सान इन्सान से न कभी मुँह चुराये.
बस हृदय गर परिवर्तन पर उतर आये;
मानवता के लिए'क्रांति' का बिगुल बज जाये.
इन्सान इन्सान से न कभी मुँह चुराये.
बस हृदय गर परिवर्तन पर उतर आये;
मानवता के लिए'क्रांति' का बिगुल बज जाये.
वीणा सेठी
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