मुक्तक
1
बेहद उदास शाम है आज;
कोई भी साथ नहीं है आज.
चलो इतना तो करते हैं;
खुद के ही साथ हो ले आज.
(वीणा)
2
जिंदगी के नये रंग;
नई उम्मीद के संग.
लबों पर ले आएँगे;
मुस्कान की एक तरंग.
(वीणा )
नई उम्मीद के संग.
लबों पर ले आएँगे;
मुस्कान की एक तरंग.
(वीणा )
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (30.10.2015) को "आलस्य और सफलता "(चर्चा अंक-2145) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!