मुक्तक
जंगल
ख़ामोशी की इक लहर उठती है,
चुपके से मेरे कानों में जो कहती है.
वो कटने वाले पेड़ों की सदायें हैं.
जो जंगल की चीख़ बन उभरती है.
वीणा सेठी.
चुपके से मेरे कानों में जो कहती है.
वो कटने वाले पेड़ों की सदायें हैं.
जो जंगल की चीख़ बन उभरती है.
वीणा सेठी.
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पाकिस्तान और हम
घात पर घात क्यों वो करता हर बार है?;
सबक लेने के लिए क्यों हम नहीं तैयार हैं?
आखिर कब तक चलता रहेगा ये सिलसिला ?
कहो की अब जवाब देने को हम तैयार हैं .
सबक लेने के लिए क्यों हम नहीं तैयार हैं?
आखिर कब तक चलता रहेगा ये सिलसिला ?
कहो की अब जवाब देने को हम तैयार हैं .
वीणा सेठी.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुन्दर
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