गीतिका -अगर
इमेज-साभार गूगल.कॉम |
जिंदगी बन गई तपती दोपहर,
छाँव नहीं अब किसी भी पहर.
छू लेने को आसमान तैयार हैं;
हौंसलों को बस लगने हैं पर.
गर कोई चराग नहीं है जला;
हम तो जला सकते हैं मगर.
किसी की आँख में गर हैं आंसू;
क्यों न पोंछा जाये उन्हें अगर;
ये शाम वैसी नहीं रहेगी अब;
सेहन में जलता दिया रखें गर.
छाँव नहीं अब किसी भी पहर.
छू लेने को आसमान तैयार हैं;
हौंसलों को बस लगने हैं पर.
गर कोई चराग नहीं है जला;
हम तो जला सकते हैं मगर.
किसी की आँख में गर हैं आंसू;
क्यों न पोंछा जाये उन्हें अगर;
ये शाम वैसी नहीं रहेगी अब;
सेहन में जलता दिया रखें गर.
वीणा सेठी.
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