'सु' और 'कु' शब्दों की माया..
शब्द केवल निर्जीव याने संज्ञाहीन ध्वनि या कोरे कागज लिखी हुई स्याही नहीं वरन आवाज के साथ आकार लेते हुए कुछ आकृतियाँ है और कोरे कागज पर आकार लेती हुई कुछ लकीरें होती हैं, जो जब तक बोली न जाएँ महत्वहीन रहती हैं। जब भी शब्दीन को ध्वनि मिली है उसने अपना प्रभाव दिखाया है। शब्द अपना अर्थ रखते हैं और इसी का उपयोग हम अपने रोज के जीवन में करते हैं .
शब्द के आगे केवल एक शब्द लग जाने से ही वह अच्छे या बुरे भाव की श्रेणी में ड़ाल दिया जाता है।
केवल 'सु' या 'कु' लगाने से ही शब्द के मायने पूर्णतया बदल जाता है 'सु' याने अच्छा और 'कु' याने बुरा....................
पूत............... याने बेटा और जब इसके आगे .'सु' लग जाये तो वह 'सपूत' मतलब अच्छा देता और 'कु' लग जाये तो 'कपूत' याने बुरा बेटा......................
हिंदी के शब्दकोष में ढूंढेंगे तो बहुत सरे इस तरह के शब्द मिलेंगे
शब्द केवल निर्जीव याने संज्ञाहीन ध्वनि या कोरे कागज लिखी हुई स्याही नहीं वरन आवाज के साथ आकार लेते हुए कुछ आकृतियाँ है और कोरे कागज पर आकार लेती हुई कुछ लकीरें होती हैं, जो जब तक बोली न जाएँ महत्वहीन रहती हैं। जब भी शब्दीन को ध्वनि मिली है उसने अपना प्रभाव दिखाया है। शब्द अपना अर्थ रखते हैं और इसी का उपयोग हम अपने रोज के जीवन में करते हैं .
शब्द के आगे केवल एक शब्द लग जाने से ही वह अच्छे या बुरे भाव की श्रेणी में ड़ाल दिया जाता है।
केवल 'सु' या 'कु' लगाने से ही शब्द के मायने पूर्णतया बदल जाता है 'सु' याने अच्छा और 'कु' याने बुरा....................
पूत............... याने बेटा और जब इसके आगे .'सु' लग जाये तो वह 'सपूत' मतलब अच्छा देता और 'कु' लग जाये तो 'कपूत' याने बुरा बेटा......................
हिंदी के शब्दकोष में ढूंढेंगे तो बहुत सरे इस तरह के शब्द मिलेंगे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें