गुरुवार, 24 जुलाई 2014

कविता

धूप :कविता 





जिधर देखो आज
धुन्धलाइ सी है धूप. 

न जाने आज क्यों?
कुम्हलाई सी है धूप. 

आसमाँ के बादलों से
भरमाई सी है धूप. 

पखेरूओं की चहचाहट से
क्यों बौराई सी है धूप? 

पेड़ों की छाँव तले
क्यों अलसाई सी है धूप? 

चैत के माह में भी
बेहद तमतामाई सी है धूप. 

हवाओं की कश्ती पर सवार
क्यों आज लरज़ाई सी है धूप? 








वीणा सेठी.

2 टिप्‍पणियां:

Ads Inside Post