मंगलवार, 22 जुलाई 2014

कविता

  जल ही जीवन है।

 जल ही जीवन है। 
ये सब जानते हैं ;
पर उसे जीवन कहाँ मानते हैं?
गर मानते
तो उसे प्रदूषित न करते;
यूँ ही व्यर्थ न करते;
उसे  अपने  और दूसरों 
के लिए सहेजते ;
संजोकर रखते। 
जल केवल हमारे लिए नहीं 
आने वाली पीढ़ियों की भी थाती है। 
ये बात हम जान लें ;
वक्त रहते तो अच्छा है। 
नहीं तो यही जल 
पछतावे की शक्ल में ;
आँखों से आँसू बन टपकेगा।


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