आइये मकान को घर बनायें----
"घर” और "मकान”शब्द दो हैं पर अर्थ एक ही है अर्थात '
रहने की जगह'. और दोनों शब्दों में एक मूलभूत अंतर है.
'मकान' ईंट, रेत, सीमेंट से ढाला गया एक आकर होता है और 'घर' उसमें बसेरा करने वाले इंसानों से बनता है. दुनिया के
किसी भी कोने में चले जाएँ, कहीं भी रह आयें इन्सान की पनाहगाह घर ही होती है. 'मकान' तभी 'घर' होता है जब उसमें रहने वाले उसे सही मायनों में घर बनाना चाहते हों. कोई भी घर '
तेरा-मेरा घर' होने पर घर नहीं बल्कि मकान बन जाता है. घर जब '
हमारा घर' बनता है तभी 'घर' सार्थक होता है .
'मकान' नहीं "घर " |
‘हमारा घर’ हर आदमी का सपना होता है. पर उसे वह तभी पूरा कर सकता
है, जब वह उसे
अपनेपन से सराबोर कर दे. ये 'घर' परिवार के
किसी एक सदस्य से भी नहीं बन सकता, बल्कि सबकी मिली-जुली कोशिशों एवं सहयोग से ही संभव
है. आज के दौर में जिंदगी की इस आपाधापी में रिश्ते, जो कोमल पौधे की तरह होते हैं,
को संभालकर और सहेज कर रखना
और भी कठिन होता जा रहा है.एक घर को 'तेरा-मेरा' की जगह ' हमारा ' बनाना वास्तव में कठिन हो सकता है, असंभव नहीं. केवल कुछ एक बातों को फिर से याद
करने की, उन्हें
समझाने की जरुरत है. ये बातें हमें मालूम हैं, इन्हें सिखाने व समझाने की भी जरुरत नहीं.
गिले- शिकवे का दौर खत्म
हो:-- हर घर में
रहने वालों की अमूमन एक-दूसरे से शिकायत हुआ करती है. सामान्यतः यह शिकायत
स्वाभाव को लेकर होती है. पर एक बात स्वयं के लिए भी जानना आवश्यक है
की जो शिकायत दूसरों से होती है वही दूसरों को आपसे हो सकती है.इस
सच्चाई को स्वीकार कर लिया जाये तो गिले-शिकवे की आदत ख़त्म हो जाती है. बतौर
एक शायर:-
·
" जब किसी से कोई गिला
करना", सामने
अपने आइना रखना."
·
कुछ अपनी सुनाएँ, कुछ दूसरों की सुने:- घर में सबका अलग-अलग स्वभाव होता है. कोई कम बोलना पसंद करता है कोई अधिक बोलना. हर व्यक्ति अपनी बात को ही अधिक महत्व देना चाहता है, इसलिए दूसरे की बात ध्यान से सुनाने की आवश्यकता नहीं समझता जिससे मामला एक तरफ़ा हो जाता है. विचारों में मतभेद भी हो सकते हैं पर आपसी तालमेल के लिए जरुरी है की कुछ अपनी कहें व कुछ दूसरों की सुने और सहमति से बात को किसी बिन्दू पर लाकर छोड़ें. बातचीत दिलचस्प हो जाएगी और घर का माहौल भी खुशगवार हो जायेगा.
कुछ अपनी सुनाएँ, कुछ दूसरों की सुने:- घर में सबका अलग-अलग स्वभाव होता है. कोई कम बोलना पसंद करता है कोई अधिक बोलना. हर व्यक्ति अपनी बात को ही अधिक महत्व देना चाहता है, इसलिए दूसरे की बात ध्यान से सुनाने की आवश्यकता नहीं समझता जिससे मामला एक तरफ़ा हो जाता है. विचारों में मतभेद भी हो सकते हैं पर आपसी तालमेल के लिए जरुरी है की कुछ अपनी कहें व कुछ दूसरों की सुने और सहमति से बात को किसी बिन्दू पर लाकर छोड़ें. बातचीत दिलचस्प हो जाएगी और घर का माहौल भी खुशगवार हो जायेगा.
काम के लिए हाथ बढ़ाएं:- घर में
काम करने की बात को लेकर अक्सर शिकायत रहा करती है. किसी सदस्य को दूसरे का
काम कम लगता है और स्वयं का अधिक, इससे तो अच्छा है कि मिल-जुल कर काम किया
जाए, जिससे किसी एक ही
व्यक्ति पर काम का बोझा अधिक न रहे. " साथी हाथ बटाना साथी रे " कि उक्ति पर
अमल लेन पर 'घर'
घर बन जायेगा.
प्यार व आदर का खुलकर इजहार करें:- आपस में एक-दूसरे के लिए प्यार है, स्नेह है या फिर सम्मान है इसका खुलकर इजहार
करें . ये छुपाने वाली चीजें नहीं किन्तु इनका उपरी दिखावा कदापि न करें . कार्य कि प्रशंसा करना भी एक तरीका
है. एक-दूसरे को गिफ्ट देना भी प्यार के इजहार का एक प्यारा सा ढंग है. '
सरप्राइज गिफ्ट ' के क्या कहने! ये दिलों को नजदीक लाता है और पारिवारिक
बंधन और अधिक मजबूत होते हैं.
घूमने-फिरने जाएँ:- परिवार के सदस्यों के साथ कभी-कभी बाहर भी जाना 'घर' को जीवन्त बनाये रखने के लिए बहुत जरुरी है. आउटिंग पर जाने का मतलब
घर के सदस्यों का एक साथ
बैठना, खाना, बातचीत. हँसीं-मजाक करना. घर-परिवार कि
समस्या से दूर आनंद के ये पल परिवार को और नजदीक ही लाते हैं. एक लम्बी
ड्राइव, शानदार डिनर
या फिर एक पिकनिक से जानदार आउटिंग कोई हो ही नहीं सकती और अगर
ये सरप्राइजिंग हो तो मजा दुगुना हो जाता है. पर पहले ये जरुर जान लें कि
कोई सदस्य किसी काम में मसरूफ तो नहीं, नहीं तो आपका सरप्राइज आपके लिए ही ' शॉकिंग सरप्राइज ' न हो जाए. कभी-कभी एक सुंदर सी ड्रेस का
उपहार खुशियों को कई गुना बढ़ा देता है.
ये बातें
परिवार-घर को 'तेरा-मेरा'
से ' हमारा ' में बदल देतीं है. ऐसे ' हमारे-घर ' में एक शाम को काम से थककर हर इन्सान
लौटकर आना चाहता है, जँहा
कुछ लोग आपकी वापसी के इंतज़ार में अपनी पलकें बिछाए रहते हैं. शाम को घर लौटकर एक
कप गरमा-गरम चाय के साथ दिनभर कि व्यस्तता को गपशप का चटपटी बातों भरा नाश्ता सारे दिन कि थकान को दूर करने के
लिए काफी होता है. पर शर्त यही है कि ' हो प्यारा-सा घर हमारा'.
वीणा सेठी
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