सरहदों के साए
लहू से सींच रहे सरहदों के साए;
बारूद में पनप रहे दुनिया के सरमाये.
हर तरफ चल रही बारूद की हवाएं;
गोलियों से छलनी हो रहे
इंसानों के सीने;
हर तरफ दरिंदगी में पनप के
लोग लगे हैं जीने.
हर तरफ बरस रहे बमों के गोले;
हर जिस्म पर पड़ रहे दहशत
के फफोले;
हर मुल्क दुनिया का सरमाया बन रहा;
नफरत की आड़ में ख़ूनी खेल रहा;
हर शख्स है हैरान-पशेमाँ;
इंसानियत दम तोड़ रही कहाँ ??
इन्सान इन्सान को भूल रहा;
सिर्फ पाने लिए लड़ रहा,
ये दुनिया है इन्सान की
पर इन्सान है कहाँ??
इस सवाल से है हर शख्स है परेशान.
बारूद में पनप रहे दुनिया के सरमाये.
हर तरफ चल रही बारूद की हवाएं;
गोलियों से छलनी हो रहे
इंसानों के सीने;
हर तरफ दरिंदगी में पनप के
लोग लगे हैं जीने.
हर तरफ बरस रहे बमों के गोले;
हर जिस्म पर पड़ रहे दहशत
के फफोले;
हर मुल्क दुनिया का सरमाया बन रहा;
नफरत की आड़ में ख़ूनी खेल रहा;
हर शख्स है हैरान-पशेमाँ;
इंसानियत दम तोड़ रही कहाँ ??
इन्सान इन्सान को भूल रहा;
सिर्फ पाने लिए लड़ रहा,
ये दुनिया है इन्सान की
पर इन्सान है कहाँ??
इस सवाल से है हर शख्स है परेशान.
वीणा
गहन भाव....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना..
अनु
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंइन्सान की तलाश
बेहद खुबसूरत ! क्या बात
जवाब देंहटाएं