बुधवार, 25 अप्रैल 2012

.यादें -------5(डर पर काबू)

डर पर काबू पाना सीखो...

 पिछली मार्च की १-२ तारीख में मै स्कूटी से होशंगाबाद जा रही थी. गाड़ी में काफी सावधानी से चलती हूँ और हमेशा राईट साइड का ध्यान रखती. मेरी कोशिश यही रहती है की मई ५० की गति से अधिक नहीं चलाऊँ. उस दिन भी मै इतनी ही स्पीड से स्कूटी चला रही थी. होशंगाबाद से कोई २-३ km दूर पहाड़िया पिकनिक स्पोट है( ये जगह काफी मशहूर है. यहाँ पर प्रागैतिहासिक कालीन गुफाएं हैं और टूरिस्ट बहुत आते हैं.. मार्च के महीने में मसुं में थोड़ी सी गर्मी घुलने लगी थी और दोपहर के समय इस इलाके में थोड़ी सी ख़ामोशी का आलम छाने लगता है.  पहाड़िया के सामने से सड़क गुजरती है और थोड़ी आगे ही एक गहरा मोड़ आता है वही पर अचानक सामने से एक जीप आ गई और मै अपना संतुलन नहीं रख सकी और जीप ने मेरी गाड़ी को जमकर टक्कर दी और मै गाड़ी सहित घसीटती हुई सड़क के किनारे गढ्ढे में जा पड़ी. ये तो गनीमत थी कि गढ्ढा गहरा नहीं था. जीप वाला मुझे घायल कर भाग गया.मुझे काफी चोटें आई थीं। मै काफी देर तक घायल अवस्था में सड़क के किनारे पड़ी रही पर कोई भी मेरी सहायता को नहीं आया, और स्कूटी के नीचे में दबी सी पड़ी थी काफी देर बाद हिम्मत करके मै खड़ी हुई। हिम्मत करके गाड़ी सीधी की और उस समय तो चोटों का दर्द महसूस नही हुआ पर जैसे-तैसे ५० की.मी तक गाड़ी चलाकर मै घर तक पहुचीं और ३-४ घंटे बाद जब दर्द को महसूस किया तो पसलियों पर पड़ी चोटें पुरे दो महीने बाद जाकर ठीक हुई।


घर में सब चिंता कर रहे थे और माँ से जब डांट पड़ी तो और हिदायत मिली कि आगे से कभी अकेले गाड़ी चलकर दूर नहीं जाओगी. इस घटना का जो मुझ पर जो असर हुआ उसके कारण मै लगभग ८-१० महीने गाड़ी चलाने से कतराती रही और फिर एक दिन जनवरी के महीने में पुनः होशंगाबाद जाने का अवसर आया तो मै बहाने बनाने लगी और सोचा की क्यों न बस से जाऊं । तब मेरे पापा ने कहा , " नहीं! तुम स्कूटी से ही जाओ । अगर आज नहीं गई तो जिदगी भर स्कूटी क्या कोई भी गाड़ी नहीं चला पाओगी । अपने डर पर काबू पाना सीखो ,अगर आज डर से हार गई तो फिर कभी भी जिंदगी में कोई काम करने का जोखिम नहीं उठा पाओगी और कुछ करने से पहले ही हार का सामना करना पड़ेगा क्योंकि............ जब भी तुम कुछ नया काम करना शुरू करोगी तो तुम्हे ये घटना याद आएगी और तुम काम आधे-अधूरे मन से करोगी और हमेशा यही डर सताएगा कही इससे कुछ हानि तो नहीं हो जाएगी.......... अपने डर को अपने पर हावी मत होने दो, उसका सामना करो वो अपने आप भाग जायेगा......."
बस अपने पापा कि बात गांठ बांध ली और फिर से स्कूटी से होशंगाबाद गई और मेरा सफ़र यही नहीं रुका आज मै गारमेंट कंपनी को सफलता पूर्वक चला रही हूँ. ये डर से सामना करने का नतीजा था कि मै अब कोई  भी जोखिम लेने से नहीं चूकती



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