९ मई को पूरी दुनिया में 'मदर्स' डे के रूप में बड़े जोरों शोरों से मनाया जा रहा है। पर हमारे यहाँ तो माँ के लिए तो पूरे ३६५ दिन होते हैं उसके लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता ही नहीं कोंकी माँ है ही इतनी आदरणीय और प्यारी की हर दिन उसके नाम पर है।
हमें किसी भी रिश्ते को यदि याद करने या निभाने की तब जरुरत होती है जब हम उसे भूलने लगते हैं और उस के नाम एक विशेष दिन करके उस रिश्ते को एक विशेष एहसास दिलाने की कोशिश करते हैं ऐसा तभी जरुरी होता है जब हमारे पास उस रिश्ते को निभाने का समय नहीं होता या हम अपनी ही दुनिया को ' its my life' कारके जीना चाहते हैं। और दूसरे रिश्ते और एहसास के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने की के लिए समय की कमी का बहाना बना देते हैं। फिर ग्लानी स्वरुप इस रिश्ते को एक नाम विशेष देने की चेष्टा करते हैं और न जाने किस-किस तरह के स्वांगों से उस रिश्ते के प्रति अपना एक बड़ा सा धन्यवाद कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और उक्त दिन को साल के बाकि दिनों के लिए उस एहसास और रिश्ते को किसी स्टोर रोम के किसी अँधेरे कोने किसी अलमारी या बक्से में बंद कर अपनी दुनिया में 'its my life' को जीने के लिए लौट जाते हैं।
वास्तव में मदर्स डे पश्चिम की देन है और ये विचारधारा इस लिए वहां पनपी क्योंकि वहां रिश्तों को निभाने के लिए समय की सीमा निर्धारित है और लहू के रिश्तों में भी मिलने के लिए पहले से समय निर्धारित किया जाता है उसी के बाद ही माता-पिता अपनी संतानों से या संतान अपने माँ-पिता से मिल पते हैं॥ पिश्चिम संस्कृति में रिश्तों को निभाने में भी औपचरिकताओं की मोहताज है और यही सोच भारत में भी अपने पैर पसर रही है और इसके लिया बाकायदा मीडिया का सहारा लिया जा रहा है और इस दिन को प्रायोजित भी किया जा रहा है, इस तरह की सच किसी दिन वक्त की धारा के बिच छोटे-छोटे टापू की तरह निकल आयेंगे।
भारत में " माँ" एक अहम् शब्द है जो किसी दिन का मोहताज नहीं , यहं माँ का दर्जा इश्वर से भी ऊँचा है। यही एक रिश्ता पूरी दुनिया में ऐसा है जो किसी भी स्वार्थ से ऊपर और बिना किसी मांग या पहचान के जीने की छह रखता है। भारत में माँ अपनी संतानों से ममत्वपूर्ण प्रेम करती है और उसकी ममता की स्नेह की धारा अविरल बहती है। इसलिए भारत में तो पूरे ३६५ दिन माँ के नाम है।
एक बात अभी शेष है.......................
mothers day पर इस माँ को नहीं भूलना चाहिए जिसे ' धरती माँ' कहते हैं.जिसके आँचल में पूरा प्राणी जगत साँस ले रहा है। हम अपनी इस जगत माँ से ही उसकी सांसे छिनने की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह से हम उसकी संताने होकर उसका सीना लहूलुहान कर रहे हैं कही ऐसा न हो की एक दिन हमारा ही अस्तित्व संकट में आ जाये ??????????
हमें किसी भी रिश्ते को यदि याद करने या निभाने की तब जरुरत होती है जब हम उसे भूलने लगते हैं और उस के नाम एक विशेष दिन करके उस रिश्ते को एक विशेष एहसास दिलाने की कोशिश करते हैं ऐसा तभी जरुरी होता है जब हमारे पास उस रिश्ते को निभाने का समय नहीं होता या हम अपनी ही दुनिया को ' its my life' कारके जीना चाहते हैं। और दूसरे रिश्ते और एहसास के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने की के लिए समय की कमी का बहाना बना देते हैं। फिर ग्लानी स्वरुप इस रिश्ते को एक नाम विशेष देने की चेष्टा करते हैं और न जाने किस-किस तरह के स्वांगों से उस रिश्ते के प्रति अपना एक बड़ा सा धन्यवाद कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और उक्त दिन को साल के बाकि दिनों के लिए उस एहसास और रिश्ते को किसी स्टोर रोम के किसी अँधेरे कोने किसी अलमारी या बक्से में बंद कर अपनी दुनिया में 'its my life' को जीने के लिए लौट जाते हैं।
वास्तव में मदर्स डे पश्चिम की देन है और ये विचारधारा इस लिए वहां पनपी क्योंकि वहां रिश्तों को निभाने के लिए समय की सीमा निर्धारित है और लहू के रिश्तों में भी मिलने के लिए पहले से समय निर्धारित किया जाता है उसी के बाद ही माता-पिता अपनी संतानों से या संतान अपने माँ-पिता से मिल पते हैं॥ पिश्चिम संस्कृति में रिश्तों को निभाने में भी औपचरिकताओं की मोहताज है और यही सोच भारत में भी अपने पैर पसर रही है और इसके लिया बाकायदा मीडिया का सहारा लिया जा रहा है और इस दिन को प्रायोजित भी किया जा रहा है, इस तरह की सच किसी दिन वक्त की धारा के बिच छोटे-छोटे टापू की तरह निकल आयेंगे।
भारत में " माँ" एक अहम् शब्द है जो किसी दिन का मोहताज नहीं , यहं माँ का दर्जा इश्वर से भी ऊँचा है। यही एक रिश्ता पूरी दुनिया में ऐसा है जो किसी भी स्वार्थ से ऊपर और बिना किसी मांग या पहचान के जीने की छह रखता है। भारत में माँ अपनी संतानों से ममत्वपूर्ण प्रेम करती है और उसकी ममता की स्नेह की धारा अविरल बहती है। इसलिए भारत में तो पूरे ३६५ दिन माँ के नाम है।
एक बात अभी शेष है.......................
mothers day पर इस माँ को नहीं भूलना चाहिए जिसे ' धरती माँ' कहते हैं.जिसके आँचल में पूरा प्राणी जगत साँस ले रहा है। हम अपनी इस जगत माँ से ही उसकी सांसे छिनने की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह से हम उसकी संताने होकर उसका सीना लहूलुहान कर रहे हैं कही ऐसा न हो की एक दिन हमारा ही अस्तित्व संकट में आ जाये ??????????
main bhi sehmat hun aapse...par agar ek din aisa manate hain jis din khul ke apni bhavnayein aadmi rakh sake to kya bura hai...varna kitna kuch ankaha reh jaata hai...
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुती /
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