आज मिनी बहुत खुश थी और गुनगुना रही थी, मिनी से इसका राज जानना चाह तो उसने बताया की उसकी बहन कुलवंत पंजाब से आई है। जो पंजाब के किसी गाँव की आँगन वाड़ी में खाना बनाने का कम करती है और उससे उसे १५०० रुपये मासिक वेतन मिलता है.मैंने मिनी से पूछा, तेरी बहन तो अच्छा खासा कम लेती है............... तो वह अपना मनपसनद तो जरुर खरीदती होगी.......?', अरे कहा दीदी! उसकी तनखा तो उसका आदमी अपनी मोटर साईकिल की मासिक किश्त देने में खर्च कर देता है॥' मिनी ने तपाक से कहा। मिनी अपनी ही धुन में बता रही थी , अभी तो इस बार उसका देवर साथ आया है', मैंने बीच में ही टोका, " फिर तो वह अपने साथ खर्च करने के लिए कुछ पैसा लो लाइ ही होगी..........??", मिनी ने तुरंत अपनी पलकें झपकाकर कहा, "साथ में उसका देवर आया है तो वहि खर्च करेगा................, कुलवंत के आदमी ने उससे कहा था की सतविंदर (देवर ) जब साथ जा रहा है तो तुझे पैसे खर्चे की फिकर क्यों है..............?"उससे जब चाहे पैसे मांग लेना, पर बताऊ .........दीदी! अभी उसकी बेटी बीमार पड़ी तो उसने डाक्टर की फ़ीस के लिए अपने देवर से पैसे नहीं मांगे.........., " मेरी आँखों में तो.........का सवाल तैर गया, मिनी तुरन्त बोली, " अरे दीदी! मै अपनी भांजी के लिए इतना तो कर ही सकती थी" बात वही ख़तम हो गई और मिनी अपने कम में लग गई पर मै स्वयं प्रश्नों के भंवर जाल में कैद थी और सोच रही थी की हम ये मने बैठे है की नारी की स्वतंत्रता उसकी आर्थिक आजादी में है और उसके कमाने से उसकी स्वत्रन्त्र और अस्तित्व को एक पहचान मिलेगी ........पर कुलवंत जैसी लाखों नारियां अभी भी आर्थिक आजादी के नाम पर बेगार कर रही हैं और अपनी कमाई अपने घरवालों के हाथ में रखकर स्वयं को धन्य समझती हैं.
बात एक अनकही सी- उन बातों का एक सिलसिला है जो जाने अनजाने हमारे जीवन में रोजाना घटती रहती हैं और हम उनपर ध्यान देते भीहैं और उनकी अनदेखी भी कर देते हैं पर कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जो मन और दिमाग में बसेरा कर लेती हैं .ऐसी ही कुछ बातें और घटनाएँ बाटने की इच्छा है...............
रविवार, 16 मई 2010
कहानी-6............नारी
आज मिनी बहुत खुश थी और गुनगुना रही थी, मिनी से इसका राज जानना चाह तो उसने बताया की उसकी बहन कुलवंत पंजाब से आई है। जो पंजाब के किसी गाँव की आँगन वाड़ी में खाना बनाने का कम करती है और उससे उसे १५०० रुपये मासिक वेतन मिलता है.मैंने मिनी से पूछा, तेरी बहन तो अच्छा खासा कम लेती है............... तो वह अपना मनपसनद तो जरुर खरीदती होगी.......?', अरे कहा दीदी! उसकी तनखा तो उसका आदमी अपनी मोटर साईकिल की मासिक किश्त देने में खर्च कर देता है॥' मिनी ने तपाक से कहा। मिनी अपनी ही धुन में बता रही थी , अभी तो इस बार उसका देवर साथ आया है', मैंने बीच में ही टोका, " फिर तो वह अपने साथ खर्च करने के लिए कुछ पैसा लो लाइ ही होगी..........??", मिनी ने तुरंत अपनी पलकें झपकाकर कहा, "साथ में उसका देवर आया है तो वहि खर्च करेगा................, कुलवंत के आदमी ने उससे कहा था की सतविंदर (देवर ) जब साथ जा रहा है तो तुझे पैसे खर्चे की फिकर क्यों है..............?"उससे जब चाहे पैसे मांग लेना, पर बताऊ .........दीदी! अभी उसकी बेटी बीमार पड़ी तो उसने डाक्टर की फ़ीस के लिए अपने देवर से पैसे नहीं मांगे.........., " मेरी आँखों में तो.........का सवाल तैर गया, मिनी तुरन्त बोली, " अरे दीदी! मै अपनी भांजी के लिए इतना तो कर ही सकती थी" बात वही ख़तम हो गई और मिनी अपने कम में लग गई पर मै स्वयं प्रश्नों के भंवर जाल में कैद थी और सोच रही थी की हम ये मने बैठे है की नारी की स्वतंत्रता उसकी आर्थिक आजादी में है और उसके कमाने से उसकी स्वत्रन्त्र और अस्तित्व को एक पहचान मिलेगी ........पर कुलवंत जैसी लाखों नारियां अभी भी आर्थिक आजादी के नाम पर बेगार कर रही हैं और अपनी कमाई अपने घरवालों के हाथ में रखकर स्वयं को धन्य समझती हैं.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें