शनिवार, 8 मार्च 2014

कविता:





महिला दिवस -8 मार्च 





एक नई पहचान

मुस्कराहट
उसकी आँखों से उतरकर;
ओठों को दस्तक देती
कानों तक फ़ैल गई थी.
ये मुस्कराहट
उसकी सच्चाई की जीत
और
उपलब्धियों से आई थी.
वो थी:
एक लड़की
कदम-कदम पर
उसे ये बात;
याद कराई जाती थी.
बहुत बार
हताश-निराश हो,
वह
वापिस जाना चाहती थी;
पर हर बार
उसकी माँ की कही बात,
उसे याद आ जाती थी.
बेटी ...!
पहले अपने अंदर की
कमजोरी को जीतना,
याद रखना
तुम एक लड़की नहीं:
"पहले एक इंसान हो".
आधी लड़ाई तो
तुम यही जीत जाओगी.
बाकि आधी:
जब लक्ष्य सामने नज़र आये,
अर्जुन बन
बस उसे बेध देना,
तब जीत जाओगी.
देखना तब:
समय और
तुम्हारे चारों ओर बहता,
सब कुछ थम जायेगा.
और
करतल ध्वनियों का कोलाहल
तुम्हारी सफलता को
और तुम्हे
एक नई पहचान दे जायेगा.
वीणा सेठी

1 टिप्पणी:

Ads Inside Post