एक ख्वाब देखा था
रोटी का.
दुनिया ने जब
आँखें खोलने का मौका दिया;
तब
सुलगता सा प्रश्न देखा
रोटी का.
समाज के वर्गों सा
मैंने;
आकर बदलता देखा
रोटी का.
अमीर की डायनिंग टेबल पर
सोने की थाली में सजी रोटी;
पर
गरीब के
हाथ में है प्रश्न बिलखता
रोटी का.
शामिल हुआ जब मै
दौड़ में जिंदगी की;
तब
सुरसा सा
सामने आया प्रश्न कमाना
रोटी का.
स्वप्न सब हवा हुए
चक्रवात में रोटी के,
कोलतार की गर्म सड़क पर;
स्वयं को घसीटता
अब
मै स्वयं सुलग रहा हूँ,
तवे की झुलसी हुई रोटी सा.
वीणा सेठी.
रोटी का.
दुनिया ने जब
आँखें खोलने का मौका दिया;
तब
सुलगता सा प्रश्न देखा
रोटी का.
समाज के वर्गों सा
मैंने;
आकर बदलता देखा
रोटी का.
अमीर की डायनिंग टेबल पर
सोने की थाली में सजी रोटी;
पर
गरीब के
हाथ में है प्रश्न बिलखता
रोटी का.
शामिल हुआ जब मै
दौड़ में जिंदगी की;
तब
सुरसा सा
सामने आया प्रश्न कमाना
रोटी का.
स्वप्न सब हवा हुए
चक्रवात में रोटी के,
कोलतार की गर्म सड़क पर;
स्वयं को घसीटता
अब
मै स्वयं सुलग रहा हूँ,
तवे की झुलसी हुई रोटी सा.
वीणा सेठी.
..bahut sundar!
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंयही ज़िन्दगी की सच्चाई है रोटी के इर्द गिर्द घूमती हुई।
जवाब देंहटाएंआपको पसंद आई,धन्यवाद।
हटाएंसार्थकता लिए सशक्त अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमेरी कोशिश हमेशा यही रहती है कि कुछ अच्छा लिखूं .
हटाएंसार्थक और सर गर्भित रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
करुण पुकार
हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया .
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