जागते रहो...
दिसम्बर की ठिठुरा देने वाली रात में ख़ामोशी को चीरती एक आवाज ने गहरी नींद से जगा दिया। रात में गश्त लगाने वाले चौकीदार की आवाज " जागते रहो..........." ने वाकई जगा दिया था । सारी रात इन्ही दो शब्दों पर केन्द्रित हो कर रह गई थी पिछले २००० सालों से कोई न कोई चौकीदार इसी तरह से आवाज लगा कर जगाने की कोशिश कर रहा है और हमारी नींद है की टूटने का नाम नहीं ले रही। क्या वाकई हम जग चुके हैं...?
उस ठिठुरती रात के अँधेरे में उस चौकीदार की आवाज फिर से सन्नाटे को चीरती हुई फिजा में गूंजने लगी ,'जागते रहो....."
दिसम्बर की ठिठुरा देने वाली रात में ख़ामोशी को चीरती एक आवाज ने गहरी नींद से जगा दिया। रात में गश्त लगाने वाले चौकीदार की आवाज " जागते रहो..........." ने वाकई जगा दिया था । सारी रात इन्ही दो शब्दों पर केन्द्रित हो कर रह गई थी पिछले २००० सालों से कोई न कोई चौकीदार इसी तरह से आवाज लगा कर जगाने की कोशिश कर रहा है और हमारी नींद है की टूटने का नाम नहीं ले रही। क्या वाकई हम जग चुके हैं...?
उस ठिठुरती रात के अँधेरे में उस चौकीदार की आवाज फिर से सन्नाटे को चीरती हुई फिजा में गूंजने लगी ,'जागते रहो....."
सोचने पर मजबूर कर दिया आपने
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