और कितने ...................... 0000000शून्य
शून्य याने कुछ नहीं। शून्य याने अन्तरिक्ष । शून्य याने जहाँ से आरम्भ वहीं पर अंत। गणित में शून्य का कोई मन नहीं होता याने संख्या में शून्य से गुणा या भाग दो परिणाम शून्य ही आएगा। यह शून्य सम्पूर्ण विश्व को भारत की दें है।
शून्य अर्थात अनंत , अन्तरिक्ष पूरा ब्रम्हाण्ड शून्य है। शून्य जिसे नापा नहीं जा सकता।
शून्य इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है की वह अपरिमित है। शून्य का गणितीय मान्य नगण्य या कुछ भी न हो किस इससे मानवीय जीवन में कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। किन्तु यह वाकई विचारणीय और चिंताजनक बात है की हम अपने जीवन में कितने शून्य हो चुके हैं। हमें स्वयं ही खबर नहीं कि हम अपनी संवेदनाओं, भावनाओं में न जाने कितने शून्य लगा चुके हैं.
हम इतने सम्वेदनाशुन्य और भावनाशून्य हो चुके हैं कि हम पाएंगे कि हमारे आसपास कितना कुछ अमानवीय घट रहा है वह हमारी संवेदना को स्पर्श ही नहीं करता हमारा हृदय यह सब देखकर उद्वेलित ही नहीं होता, ताना कुछ हमारे चारों ऑर घट रहा है कि हम इन सबके प्रति कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दिखाना चाहते बल्कि कुछ भी गैर इंसानियत घट रहा होता है उसकी अनदेखी करके हम आगे बढ़ जाते हैं। लता है हमारे अंदर संवेदना मर चुकी है और हम केवल एक सोई हुई अवस्था में मानवीय जीवन गुजर रहे हैं।
रिश्ते-नातों में भी हमारी भावनाये अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं. हम भावनाशुन्यता के जिस दौर से गुजर रहे हैं आज उसमें रिश्तों का महत्व लगभग शून्य हो चूका है यही कारण है कि हम रिश्तों के प्रति एक उदासीन भाव अपनाते जा रहे हैं..................अभी भी वक्त है कि हम सम्हाल जाएँ और इस शुन्यता के एहसास से बहार निकल जाएँ नहीं तो ऐसा न हो कि एक दिन हम स्वयं भी इस शून्य से घिर जाएँ और कोई हमारी आवाज ही न सुन सके क्योंकि जो हम दूसरों के किये महसूस करेंगे व्ही कुदरत हमारे लिए भी निर्धारित करती है तब हम किसी से भी शिकायत नहीं कर पाएंगे।
वैसे भी भारतीय समाज इतना अधिक भावनाशून्य और संवेदनाशुन्य हो चूका है कि अब इसे किसी परस कि जरुरत है जो इसमें फिर से वही संवेदना और भावना भर सके जो कभी इस समाज कि रीढ़ हुआ करता था.
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शून्य याने कुछ नहीं। शून्य याने अन्तरिक्ष । शून्य याने जहाँ से आरम्भ वहीं पर अंत। गणित में शून्य का कोई मन नहीं होता याने संख्या में शून्य से गुणा या भाग दो परिणाम शून्य ही आएगा। यह शून्य सम्पूर्ण विश्व को भारत की दें है।
शून्य अर्थात अनंत , अन्तरिक्ष पूरा ब्रम्हाण्ड शून्य है। शून्य जिसे नापा नहीं जा सकता।
शून्य इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है की वह अपरिमित है। शून्य का गणितीय मान्य नगण्य या कुछ भी न हो किस इससे मानवीय जीवन में कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। किन्तु यह वाकई विचारणीय और चिंताजनक बात है की हम अपने जीवन में कितने शून्य हो चुके हैं। हमें स्वयं ही खबर नहीं कि हम अपनी संवेदनाओं, भावनाओं में न जाने कितने शून्य लगा चुके हैं.
हम इतने सम्वेदनाशुन्य और भावनाशून्य हो चुके हैं कि हम पाएंगे कि हमारे आसपास कितना कुछ अमानवीय घट रहा है वह हमारी संवेदना को स्पर्श ही नहीं करता हमारा हृदय यह सब देखकर उद्वेलित ही नहीं होता, ताना कुछ हमारे चारों ऑर घट रहा है कि हम इन सबके प्रति कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दिखाना चाहते बल्कि कुछ भी गैर इंसानियत घट रहा होता है उसकी अनदेखी करके हम आगे बढ़ जाते हैं। लता है हमारे अंदर संवेदना मर चुकी है और हम केवल एक सोई हुई अवस्था में मानवीय जीवन गुजर रहे हैं।
रिश्ते-नातों में भी हमारी भावनाये अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं. हम भावनाशुन्यता के जिस दौर से गुजर रहे हैं आज उसमें रिश्तों का महत्व लगभग शून्य हो चूका है यही कारण है कि हम रिश्तों के प्रति एक उदासीन भाव अपनाते जा रहे हैं..................अभी भी वक्त है कि हम सम्हाल जाएँ और इस शुन्यता के एहसास से बहार निकल जाएँ नहीं तो ऐसा न हो कि एक दिन हम स्वयं भी इस शून्य से घिर जाएँ और कोई हमारी आवाज ही न सुन सके क्योंकि जो हम दूसरों के किये महसूस करेंगे व्ही कुदरत हमारे लिए भी निर्धारित करती है तब हम किसी से भी शिकायत नहीं कर पाएंगे।
वैसे भी भारतीय समाज इतना अधिक भावनाशून्य और संवेदनाशुन्य हो चूका है कि अब इसे किसी परस कि जरुरत है जो इसमें फिर से वही संवेदना और भावना भर सके जो कभी इस समाज कि रीढ़ हुआ करता था.
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शून्य का एक अर्थ पूर्णता भी तो है । पर य़ह पहुँचे हुए लोगों के लिये है । आम आदमी को जीने के लिये भावना संवेदना की बहुत जरूरत है पर हमारा स्वार्थ..........
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