मालू की माँ........
आज मालू की माँ के हाथ से अचानक आचार का मर्तबान जमीं पर गिरा और टूट गया। मर्तबान टूटने सी आवाज सुनकर मालू अपने कमरे से दौड़ी आई और देखा माँ डरी सहमी सी खड़ी हैं और मालू को जैसे ही देखा तो जोर जोर से रोकर बनाते लगी, ' बेटा! मैंने जानबूझकर नहीं तोड़ा, हाथ से न जाने कैसे फिसल गया '। मालू माँ की ओर देखती रह गई , उसने माँ से पूछा, ' माँ! तुम्हे चोट तो नहीं लगी?' मालू की बात का जवाब दिए बिना ही माँ रोये जा रही थी। मालू की माँ कुछ समय पहले ही उसके पास हमेशा के लिए रहने आ गई थीं, कुछ दिन पहले ही उसके पिता की मृत्यु हुई थी ओर वही अपनी माँ का अकेला सहारा थी।मालू माँ के चहरे को देखते हुए अपने अतीत में पहुँच गई। मालू जब छोटी थी तब छोटी-छोटी गलती पर अक्सर माँ उसे पीट दिया करती थी ओर ये कहती थीं, ' आगे से करेगी ऐसा?' माँ कभी भी उससे गलती का कारण न जानने की कोशिश करती थीं ओर न ही पूछती थीं और अगर कोई चीज टूट जाती थी तो जो भी झाड़ू या लकड़ी हाथ में आ जाती उसी से उसे इतना पिटती थी मानो नुकसान की भरपाई कर रही हो।
माँ का रोना सुनकर मालू अतीत से वर्तमान में लौट आई। उसने देखा माँ अभी भी रोते हुए कह रही थी , ' मैंने नहीं तोड़ा............................'।
बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट अकसर हम हर बात पर बच्चों को दोश देते हैं मगर उसी बात को पीछे मुड कर देखें तो उसकी तस्वीर दूसरी ही नज़र आती है। बहुत अच्छी लगी ये रचना धन्यवाद्
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