जीवन-मृत्यु
चित्र -सौजन्य google.com
1
पेड़ पे ऊगी कोंपल;
बन हरा पत्ता,
फिर मुरझाया;
डाल से टूट गया.
2
मुठ्ठी में भरी रेत;
धीरे से फिसली
और मुठ्ठी रीत गई.
3
खेत में लहलहाई
फसल;
पककर कटी,
खेत खाली कर गई.
4
पानी का बुलबुला;
धीरे से उठ,
सतह पर आया;
फिर विलीन हो गया.
5
भोर में;
आसमां से पत्ते पर गिरी
ओस की बूंद,
सूरज के सर चढ़ते ही,
हवा हो गई.
वीणा सेठी
सार्थक और सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार ११ दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया.
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार ११ दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंसुंदर क्षणिकाएं.!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...आपको पसंद आई.
हटाएंsarthak rachna
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
हटाएंआदरणीय वीणा जी -- साहित्य की सुंदर विधा ' क्षणिका ' के रूप में आपकी सार्थक रचनाएं बहुत सार्थक और मंमिहक लगी | सादर शुभकामना |
जवाब देंहटाएंआपको पसंद आई. धन्यवाद.
हटाएंthanks
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