माँ का दिल
नये साल की वह पहली सुबह जैसे बर्फ की
चादर ओढ़े ही उठी थी. 10 बज चुके थे पर सूर्यदेव अब तक धुंध की रजाई ताने सो रहे थे. अनु
ने पूजा की थाली तैयार की और ननद के कमरे में झांक कर
कहा," नेहा! प्लीज
नोनू सो रहा है ,उसका ध्यान रखना. मैं मंदिर जा कर आती हूँ ।"
शीत लहर के तमाचे खाते और ठिठुरते हुए उसने मंदिर
वाले पथ पर पग धरे ही थे कि उसके पैरों को जैसे किसी ने जकड़ लिया. एक खौफनाक मंजर उसके
मुँह बाएं खड़ा था. सामने की सड़क पर 4-5
साल का बच्चा खून से लथपथ पड़ा था. सुबह की इस ठिठुरा देने वाली ठण्ड में सड़क विधवा
की सूनी मांग की तरह खाली पड़ी थी. उसने मंदिर की ओर ये सोच के कदम बढ़ाये कि वह इस
पचड़े में नहीं पड़े किन्तु उस बच्चे के करीब से निकलते हुए उसके मन में हूक सी उठी.
“ न जाने किस माँ का लाल है...? कहाँ होगी वह...? क्या उसे अपने लाड़ले का ख्याल
नहीं आया होगा...?” जैसे सवाल उसके मन में उठ रहे थे. वह जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ी तो
उसके पैरों को जैसे किसी ने जकड़ लिया, उसके मन में एकदम अपने बेटे नानू का ख्याल
हो आया और उसने पलट कर उस बच्चे को देखा तो उससे रहा नहीं गया और वह दौड़कर उस
बच्चे के पास जाकर बैठ गई, उसके हाथ में पूजा की थाली थी जिसे उसने वहीँ ज़मीन पर
रख दिया और धीरे से बच्चे पर झुकी तो उसने पाया कि बच्चे की सांस चल रही थी. उसने
तुरंत ही निर्णय लिया और उस बच्चे को गोद में उठाकर दौड़ लगाईं. उसे पता था कि 3
ब्लाक छोड़कर डॉ. सोनी रहते हैं, उनके घर पहुँचकर उसने तबातोड़ घंटी बजाई. डॉ. सोनी आज
थोड़ा देर से सोकर उठे थे पर घंटी की आवाज से समझ नहीं पाए कि कौन हो सकता है...?
दरवाजे पर वे अनु तो देखकर थोड़ा अचरज में पड़ गए. उसकी गोद में घायल बच्चे को देखकर वो तुरंत सारा मांजरा समझ गए और
जल्दी से अन्दर से कार की चाबी लेकर आये और कार सिटी हॉस्पिटल की ओर दौड़ा दी.
बच्चे को ओ.टी. में ले जाकर उसका तुरंत ट्रीटमेंट शुरू कर दिया गया, और इसी दौरान
पुलिस ने भी मामला दर्ज कर लिया. इतना सब होतो-होते 12 बज चुके थे. बच्चे को
सुरक्षित हाथों में जान अनु ने चैन की सांस ली और अब उसे घर की याद सताने लगी. डॉ.
सोनी ने उसे घर भेज दिया और उसका मोबाइल नं. ले लिया ताकि उसे बच्चे का हाल-चाल
बता सकें. 2-3 बजे के करीब अनु को डॉ. का फोन आया और उन्होंने बताया कि उस बच्चे
की माँ मिल गई है. जोकि अपने बच्चे के साथ बस से अगले शहर में अपने मायके जा रही
थी, रास्ते में कब उसकी नींद लग गई उसे पता ही नहीं चल और वो बच्चा खिड़की खुली
होने के कारण उससे बाहर झांक रहा था और इसी दौरान वह उस खिड़की से बाहर अधिक झुक
गया था और सड़क पर गिर गया था जिससे उसे काफी चोटें आईं थीं पर वह अब खतरे के बाहर
था. कहना नहीं होगा कि वह महिला और अनु स्नेह बंधन के ऐसे सेतु से जुड़ गए थे जो
कभी भी टूटने वाला नहीं था, ये एक माँ से माँ का रिश्ता था.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-010-2017) को
जवाब देंहटाएं"अनुबन्धों का प्यार" (चर्चा अंक 2745)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अनुकरणीय
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