रिश्तों
की मिठास
फाल्गुन
माह के लगते ही बसंत ऋतू बिदाई की तैयारी
कर रही होती है और साथ ही ठंडक अपने अवसान पर होती है. ऐसे समय में हवा में ठण्ड
की खनक धीमी पड़ने लगती है और गर्मी दबे क़दमों से आ जाती है और फिजाओं में रंगत छाने
लगती है.
फाल्गुन
माह वास्तव में ऋतुओं के राजा बसंत की बिदाई का समारोह है जो रंगों की फुहार में
सराबोर रहता है. भारत के उत्सव का ये वो रंग है जो रिश्तों में मिठास का रंग घोलता
है. एक समय था जब भारतीय सिनेमा बिना होली गीत के मुकम्मल नहीं माना जाता था. अब
भी होली इन गीतों की गूंज के बिना अधूरी है. होली के समय पूरी धरती धानी चूनर ओढ़
लेती है. हर ओर बस रंग की तरंग होती है. ये त्यौहार वैसे
तो बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व माना
जाता है इस दिन लोग दुश्मनी भूलकर गले मिलते हैं और रिश्तों में और भी समीपता लाने
कि कोशिश करते हैं . ‘बुरा न मानो होली है...! ‘ ये जुमला इस दिन हवाओं के सहारे
पूरे वातावरण में डोलता रहता है.
होली
हर साल आती है और लोग इस दिन का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से करते हैं और इस दिन को और
भी मजेदार और यादगार बनाने के लिए कई दिनों से तैयारी करते हैं. इस दिन कोई भी
किसी को किसी पर भी रंग डालने से मना नहीं करता. फिर भी होली हर एक को अपने रंग
में रंग दे ऐसा ही होगा ये कोई जरुरी तो नहीं. पर इतना जरुर है हर होली कोई न कोई
खट्टी-मीठी यादें अपने पीछे छोड़ जाती है. कुछ ऐसी ही पिछले साल की होली में हुई एक घटना
की याद blog adda ने ताजा कर दी.
होली
के त्यौहार की कुछ न कुछ यादें हर इंसान के साथ धरोहर के रूप में रहती हैं.
और कुछ उसी तरह के यादों के पुंज का पीछा
करते हुए मै अपनी अतीत की गलियों में विचरण करने निकल पड़ी और एक वृद्धाश्रम के
सामने आकर रुक गई. ये पिछले साल कि होली की याद है और ये शायद मेरे जीवन की यादगार
होली रहेगी. हमारे NGO ने decide किया था कि इस बार की होली कुछ इस तरह से मनाई
जाये कि वो कुछ सार्थक हो सके. होली का पर्व वास्तव में जीवन में खुशियाँ भर देने
का त्यौहार है, उदास चेहरों पर हंसी उड़ेल देने का आयोजन है. इन्ही सब बातों को
ध्यान में रखकर हमने सोचा कि इस बार के होली में ऐसा ही कोई आयोजन करें कि जिससे
किसी उदास चहरे और इंतज़ार करती आँखों में कुछ हंसी के रंग भर सके तो शायद हम ये
समझ सकेंगे कि हमने जिंदगी में कुछ अच्छा करने की कोशिश की.
सबने
ये तय किया कि सब घर से कुछ न कुछ बना के लायेंगे और हर सदस्य को एक-एक dish बनाकर
लाने को कहा जिससे की खाने में वैरायटी भी होगी और किसी पर काम का बोझ भी नहीं
पड़ेगा. इस वृद्धाश्रम का नाम “छाँव” है और ये हमारे शहर की एक कॉलोनी में स्थित है.
यहाँ पर करीब 15-20 वृद्ध रहते हैं. हमने उस आश्रम के कर्ताधर्ता को ही केवल बताया
था और हम उन लोगों को surprise देना चाहते हैं , जिसे कि उन्होंने मान लिया था.
हमने तय किया था कि होली उनके साथ मनाएंगे और खाना-पीना भी उन्ही के बीच में
करेंगे. जब हम उनके बीच पहुंचे तो उनके उदास चहरे देखकर हम भी दहल गए थे. जिंदगी
के इतने बड़े सच से हमारा इस तरह से सामना
होगा, ये हमने कभी भी नहीं सोचा था. हम सबको वे हमारे नाना-नानी, दादा-दादी जैसे
ही लग रहे थे. हर आँख में किसी अपने के लिए इंतज़ार साफ़ दिखाई दे रहा था और जब उनके
विषय में पता चला तो लगा कि वाकई क्या खून का रंग इतना सफ़ेद हो गया है...? कि
जिन्होंने उन्हें माता-पिता बनकर पाला और जीवन की इस संध्या में उन्हें
मानसिक,शारीरिक और भावनात्मक संबल की अधिक आवश्यकता है उन्हें ही घर से पराया कर
यहाँ पंहुचा दिया. ये सब देख कर एक बार तो रिश्तों से किसी का भी विश्वास उठ सकता
है. पर...हम तो यहाँ विश्वास कायम करने आये थे और हमारी कोशिश से यदि उनके चहरे पर
हंसी और ख़ुशी की लकीरें उभर आयें तो हमारा प्रयास सार्थक हो सकता था और ऐसा हुआ
भी. जिंदगी की वो होली हम सबके जीवन की सबसे बेहतरीन होली थी.
कोई
हमारी नानी और कोई दादी बन चुकी थीं. उनसे हमें वैसा ही प्यार-दुलार मिला जैसा कि
वो किसी अपने के साथ करते. सबके मन में ये निश्चय साफ़ झलक रहा था कि वे अपने
परिवार के बजुर्गों के साथ ऐसा नहीं होने देंगे. हमारे NGO के सदस्यों ने आपस में
तय किया कि हम अपनी कोशिशों से इन्हें इनके घरों को लौटाने का पूरा प्रयास करेंगे.
और इस निश्चय के साथ हमने उनसे विदाई ली और उन्हें प्रॉमिस भी किया कि हम उनसे
मिलने आते रहेंगे. आज फिर होली का त्यौहार है और इस साल में हमारे प्रयास से करीब
9 बुजुर्ग अपने घर वापिस जा चुके हैं. हमारी थोड़ी सी कोशिश से उनके जीवन में
रिश्तों की मिठास घुल गई है. इस बार की होली को आप भी क्यों न कुछ इस तरह से मनाएं
कि वो आपके जीवन को कोई सार्थक आयाम दे सके. (वीणा सेठी)
“I’m pledging to #KhulKeKheloHoli this year by sharing my Holi memories at BlogAdda in association with Parachute Advansed.”
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