प्यार का एक पल आपकी तमाम जिन्दगी...
प्यार एक ऐसा शब्द,
जो बोलने के साथ ही वातावरण में एक जादू सा कर देता है और हर इन्सान इसके आकर्षण
में बंधा रह जाता है. प्यार की कोई भाषा नहीं होती फिर भी यह दुनिया में सबसे अधिक
बोली जाने वाली भाषा है. चक्कर खा गए न आप भी...!
अरे बाबा ...! प्यार
है ही इतनी मधुर बोली, जो किसी भी भाषा की मोहताज नहीं. ये बोलने की नहीं महसूस
करने का अमूर्त भाव है.
ये एक खुश्बू है जो
जब भी माहौल में फैलती है तो उसी में रच-बस जाती है. ये वो शब्द है जो एहसास के
दायरे में आते ही कायनात बन जाता है. यूं तो विज्ञान ने इसे कुछ रासायनिक योगिकों
का दिलफरेब समीकरण माना है. और ये भी साबित हो चुका है कि ये दिल से नहीं दिमाग से
शुरू होता है क्योंकि जब ये एहसास जगता है तो दिमाग का एक हिस्सा विशेष रूप से
सक्रिय हो जाता है.
जैसा मैंने महसूस
किया है –प्यार का एक पल आपकी तमाम जिन्दगी के लिए अमूल्य होता है, जरुरी नहीं
की वह आपकी जिन्दगी भर का साथ बन सके, पर प्यार का वो पल आपकी जिन्दगी जरुर बन
जाता है और वही पल जीवन भर आपके साथ चलता है.
खैर...! प्यार में
दो लोंगों के बीच एक खुबसूरत पल आता है जब दोनों को लगता है- यही है वो जिसे कुदरत
ने मेरे लिए और केवल मेरे लिए दुनिया में भेजा है. और दोनों को एक दूसरे का साथ
शिद्दत से चाहिए होता है. जब दो लोगों के मध्य ऐसा पल आता है तब वे एक दूसरे से
नितांत ही अन्जान होते हैं. और उनके प्यार की इन्तेहां नहीं होती, वे आपस में एक
दूसरे के लिए किसी भी हद तक जाकर त्याग करने तो तत्पर रहते हैं.
प्यार इन्सान के
अन्दर इन्सानियत का ज़ज्बा पैदा करने की ताकत रखता है. वास्तव में प्यार जब होता है
तो इन्सान एक फेंटसी और vartual world में चला जाता है,जहाँ सब कुछ हसीन और रंगीन होता है.l
जैसे-जैसे वो अगली पायदाने चढ़ता जाता है; उसमें
बंधे दोनों की एक दूसरे की आदतें, पसंद-नापसंद, व्यवहार, जीवन जीने के ढंग के बारे
में पता चलता जाता है.यही वो मोड़ होता है जहाँ प्यार की परीक्षा होती है, ये वो
मोड़ होता है जहाँ पर प्यार कभी-कभी दम भी तोड़ देता है. क्योंकि सामान्यतः ये मानव
स्वाभाव है या उसके स्वाभाव की कमजोरी कह लो कि जिन्दगी की असलियत से जब सामना
होता है तो हम अपनी कमी या कमजोरी को तो स्वीकार कर लेते हैं पर सामने वाले की वही
कमी उसका दुर्गुण लगने लगती है और उसे हम स्वीकार नहीं कर पाते. और प्यार में भी
यही होता है –असलियत से सामना होते ही वो हवा-हवाई हो जाता है, जबकि प्यार बिना
शर्त के किया और निभाया जाता है ,अन्यथा वो स्वार्थ होता है.
मेरी नज़र में तो
प्यार में इन्सान एक दूसरे को उसकी कमियों के साथ अपनाना चाहिए. ये निस्वार्थ
प्रेम का शुध्द रूप है और तभी आप अपने प्रेम को ताउम्र पा सकते हैं और उसे निभा
सकते हैं पर इसका मतलब ये नहीं की किसी की कमजोरी आप स्वीकार तो कर रहे हैं पर वो
ऐसी हो की जी का जंजाल बन जाये, बल्कि होना ये चाहिए कि अपने साथी को आप समझा सकें
की वो गलती पर है और प्यार में कौन है जो अपने को न बदलना चाहे...? क्यों ठीक है
न...??
प्यार में किसी भी
हद तक जाया जा सकता है. पर ठहरें...! मेरा ये तात्पर्य नहीं है कि आप अपने आप को
ही भूल जाएँ. ये न भूलें आप की एक शख्सीयत है जिसको देखकर ही आपके साथी के मन में
पहली बार प्रेम की भावना जगी थी और उसी शख्सियत से आपका साथी प्यार करता है. मुझे
लगता है की प्यार में जिस हद तक जाना है- उसका यही मतलब है कि आप अपने साथी जैसे
हो जाएँ या फिर उसे अपने रंग में रंग लें. प्रेम एक शुद्ध और सात्विक भावना है
जिसमें शरीर का कोई खास महत्व नहीं होता अगर इस आकर्षण से प्रेम की शुरुआत है तो
वह प्रेम नहीं केवल वासना होती है. और ऐसा प्रेम कुछ समय के बाद स्वतः ही अपना
महत्व खो देता है.
मै प्रेम के इसी
स्वरुप को स्थान देती हूँ. और इसके लिए अपने साथी के लिए यदि स्वयं को बदलना पड़े
तो भी कोई बात नहीं. मेरे शब्दों से ये मतलब न निकालें कि प्रेम के लिए स्वंय के
अस्तित्व को दाव पर लगा दिया जाये, बल्कि अपने विवेक का उपयोग कर अगर खुद को अपने
साथी के अनुरूप करेंगे तो निश्चित जानिए की वो भी अवश्य ही ऐसा ही करेगा. प्यार
में इन्सान इतना खो जाता है कि दोनों एक दूसरे के मन की बात बिना कहे ही समझ जाते
हैं. सवाल एक की आँखों में होता है उसे मुँह से कुछ भी बोलना नहीं पड़ता और जवाब
मिल जाता है. ऐसा मैंने शिद्दत से महसूस किया है. ये तभी होता है जब दोनों एक
दूसरे के अनुकूल खुद को ढाल लेते हैं और इस हद तक बदल लेते हैं कि दोनों दो अलग
शख्सियतें न होकर एक हो जाती हैं. पर ये तभी होता है जब दोनों में एक दूसरे के लिए
खुद को बदलने का ज़ज्बा हो.
प्यार में आपसी समझ,
एक-दूसरे को सम्मान देना, एक दूसरे की तकलीफ को बिना कहे समझ जाना जरुरी है. यहाँ
पर एक प्रसंग का जिक्र जरुर करना चाहूंगी. “ एक बार कबीर के पास एक व्यक्ति गया और उनसे
पूछने लगा कि जीवन साथी कैसा होना चाहिए...? उनके बीच में प्रेम का स्वरुप कैसा होता
है ...? तिस पर कबीर ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी जीवन संगिनी “रत्ना” को आवाज लगे... रत्ना...! देखो तो बाहर कितना
अंधेरा हो गया है... जरा...! दिया तो जलाकर रख जाना...! कहना न होगा की वह व्यक्ति
आश्चर्यचकित रह गया, जब उसने देखा कि रत्न बिना कोइ प्रश्न किये दिया जलाकर दोनों
के सामने रख गई. और वह समय ठेठ दोपहर का था जब भगवन भास्कर पूरी तरह से अपने
प्रकाश से संसार को आलोकित कर रहे थे. उस इन्सान को अपने प्रश्न का उत्तर बिना
बोले ही मिल गया था. बस केवल इतना ही ...
आखरी में मै मेरे
शब्दों में केवल इतना ही कहना चाहती हूँ:-
“तेरे प्यार में मै
इस कदर खो गया हूँ
कि तेरे आँखों में जब भी खुद को देखता हूँ
............तेरा ही अक्स उसमें पाता हूँ.”
(वीणा सेठी)
------------------------------------------------------------------------------------ http://bit.ly/1epU8Uj
To watch go further get closer, click the link given below
http://www.youtube.com/watch?v=ixbLMsVlpes
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (17-03-2014) को "रंगों की बरसात लिए होली आई है" (चर्चा अंक-1551) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'