शनिवार, 23 मार्च 2013

.कविता .

अभी चलते रहना चाहता हूँ.....




एक कदम और आगे
आ गया हूँ मै.
पगडण्डी वही
दिशा वही है.
कारवां आगे बढ़ चला है;
मै भी उसके साथ
एक और कदम आगे
बढ़ा रहा हूँ.
मंजिल दूर सही;
पर
मै जनता हूँ
जो मजा
सफ़र में है;
वह
मंजिल तक पहुँचने में कहाँ.......!
अभी सफ़र जारी रहेगा;
ये है मुझे पता,
और
मै चलते रहना चाहता हूँ;
चलते चले जाना चाहता हूँ,
जिंदगी के
आखरी छोर तक.........

वीणा सेठी  

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीनप्रस्तुति.

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  2. मंजिल से बेहतर लगने लगते हैं रास्ते !
    गहन अभिव्यक्ति !

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  3. indeed it all about the journey... destinations ought to come and excite but its the path .. the obstacles and the will power to make things happen to get the goal which makes the journey all the more lovable !! nice poem !!

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