रविवार, 4 मार्च 2012

प्रेम.....

प्रेम..................!!
प्रेम एक अनमोल अनुभूति है -जो शब्दों में व्यक्त कभी किया ही नहीं जा सकता..............
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प्रेम कभी पहाड़ी नदी की तरह होता है...........उद्दाम, जोशीला, सब कुछ पा  लेने को आतुर -जिस तरह पहाड़ी नदी आवेग और प्रचंड रूप धरे सारे तट बंधन को तोड़ते हुए अपने साथ सब कुछ बहा ले जाती है उसी तरह प्रेम भी सारी मर्यादाओं को तोड़ते हुए उन्माद के रूप में प्रकट होता है.....जो रिश्तों को की मर्यादा को तोड़ देता है............


प्रेम कभी शांत नदी की तरह होता है -तब ये शीतल झरने की तरह अपने प्यार की फुहार में सबको भिगो देता है...ये  अपनी मर्यादा में रहते हुए सबको सुकून और  शांति देता है.

खैर प्रेम तो प्रेम होता है उसे हम किस तरह निभाते हैं ये हम पर निभर करता है.

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