शहर के चोराहे के पास कचरे का ढ़ेर पड़ा था। उसी ढ़ेर पर बसी खाने का सामान भी बिखरा था, ३-४ गरीब बच्चे और बूढ़े खाने के सामान पर अपना हाथ साफ कर रहे थे , बासी खाने में से अपने खाने लायक खाना ढूंढते हुए एक बच्चा ख़ुशी से चिल्लाया, वाह ! मुझको तो बर्फी मिली और उसके हाथ में बर्फी का टुकड़ा था। उसे देख दूसरे बच्चे भी इसी उम्मीद में कचरे के ढ़ेर में पड़े बासी खाने को तेजी से खंगालने लगे। तभी पुलिस की सिटी की आवाज से सभी भिखारी घबरा गए और वहाँ से भाग छूटे. वो सड़क एक भीड़ भरी जगह थी और वाहने की आवाजाही की भरमार थी। ऐसे में बाकि सबने तो दौड़ कर सड़क पर कर ली पर एक छोटा गरीब बच्चा उनसे पीछे रह गया और सड़क पर करने की चेष्टा में एक बस की चपेट में आ गया। चारो और अफरा-तफरी मच गई बच्चे ने बस की नीचे दम तोड़ दिया था किन्तु उसके उस हाथ में अभी भी जीवन के चिन्ह थे जिसमे रोटी का टुकड़ा था और धीरे से वो हाथ भी अब कापकर शांत हो चुका था। थोड़ी देर बाद उस चोराहे पर वैसे ही वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई थी और लग ही नहीं रहा था की अभी कुछ पल पहले यहाँ किसी बचपन ने दम तोडा था.
एक बचपन की ऐसी भी दास्ताँ हो सकती है सोचा न था....................!
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