सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

कविता---3 (Valentine Day)


                                                               तुम और मैं
तुम स्निग्ध धारा सी बहो;
मैं निर्मल जल हो जाऊँगा


तुम धरा का रूप धरो;
मैं आकाश बन छाऊंगा


तुम वर्षा सी उमड़ पड़ो;
मैं बादल बन जाऊंगा


तुम दीप का रूप धरो;
मैं बाती बन जाऊंगा


तुम लता सी लिपट पड़ो;
मैं वृक्ष बन जाऊँगा



















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