कविता---3 (Valentine Day)
तुम और मैं
तुम स्निग्ध धारा सी बहो;
मैं निर्मल जल हो जाऊँगा।
तुम धरा का रूप धरो;
मैं आकाश बन छाऊंगा।
तुम वर्षा सी उमड़ पड़ो;
मैं बादल बन जाऊंगा।
तुम दीप का रूप धरो;
मैं बाती बन जाऊंगा।
तुम लता सी लिपट पड़ो;
मैं वृक्ष बन जाऊँगा।
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