शुक्रवार, 11 मार्च 2016

l #ShareTheLoad - A centuries old prejudice



आगाज़

 “”नारी घर की रानी है,
ये सदियों पुरानी  कहानी है.”

ये दो लाइन नारी की सामाजिक हैसियत को खुलकर बताती है और उसकी पुरुष के सामने दोयम दर्जे की स्थिति को रेखांकित करती है. और इसी बात के चलते उसे घर के कामों की ओर धकेला गया और फिर नारी और घर एक दूसरे का पर्याय बन कर रह गए. समय के साथ साथ ये पूर्वाग्रह भी पाल लिया गया कि नारी केवल घर के काम करने के लिए बनी  है. घर का काम एक full time job है जिसके लिए किसी भी मां, पत्नी, बेटी या फिर बहु को कोई salary नहीं दी जाती और कोई leave नहीं even medical leave भी नहीं. और नारी भी बिलकुल समर्पित भाव से केवल रिश्तों के लिए बिना किसी demand के काम करती रहती है. घर का हर सदस्य भी यही मानकर अपनी फरमाइशों का अंबार उसके  सामने रख देता है और ये जानने की कोशिश भी नहीं करता कि वह स्वयं क्या चाहती है...?

किसी भी घर में सुबह के होते ही जो व्यक्ति सबसे पहले घर में उठता है वह उस घर में रहने वाली नारी ही होती है, वो पत्नी भी हो सकती है या फिर माँ. सुबह उठने के साथ ही रात के सोने तक वो nonstop काम करती ही रहती है बिलकुल hotel के किसी वेटर कि तरह जो एक के बाद एक customer के order को पूरा करता रहता है. इसके विपरीत पुरुष केवल बाहर कमाने के आलावा घर लौट आने के बाद मजाल है किसी काम को हाथ लगा ले...! पत्नी भी घर से बाहर निकलकर पति के बराबर कमाने के लिए उतना ही समय घर से बाहर व्यतीत करती  है  जितना की पुरुष. पर... सुबह घर से काम पर निकलने के पहले जहाँ पुरुष केवल अपने तैयार होने और नाश्ता करने से मतलब रखता है वहीं पत्नी office जाने से पहले सूरज के जागने से पहले ही उठ जाती है और घर के काम करने में स्वयं को झोंक देती है. घर कि सफाई, सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना, बच्चों को स्कूल ले लिए तैयार करना फिर उनका टिफिन व अपना और पति का टिफिन तैयार करना ऐसे काम हैं जिसे करने के लिए उसे अपने दो हाथों को दस हाथ बनाकर काम करना पड़ता है. उसके बाद भी परिवार का हर सदस्य अपने छोटे-मोटे कामों के लिए आवाज लगता रहता है जिसे चाहें तो वे स्वयं भी कर सकते हैं और उससे उसके काम को लेकर शिकायत अलग से करते हैं. नारी दो मोर्चों पर अकेली ही जूझ रही है और उसकी परवाह किसी को भी नहीं है.

ऐसा हमेशा ही  चलता रहेगा...? नहीं अब समय आ गया है कि नारी को स्वयं भी समझना होगा की उसे स्वयं अपने लिए मापदंड तै करने होंगे.और समाज और यहाँ तक की परिवार को भी नारी के व्यक्तित्व के साथ न्याय करना होगा. उसके भी सपने हैं, उसकी भी संवेदनाएं हैं और भावनाएं  हैं. परिवार और समाज को भी समझना होगा कि नारी इस दुनिया का आधा हिस्सा है और वो भी मानव है. नारी को भी अपनी अहमियत को पहचानना चाहिए कि वो हाशिये पर राखी कोई इबारत नहीं है. उसे स्वयं अपने लिए भी प्रयास करना होगा.

# नारी स्वयं से प्यार करना सीखे. भारतीय परिवार में नारी को बचपन से ही सिखाया जाता है और ये एहसास भी दिलाया जाता है कि उसकी स्थिति घर उसके भाई से कामतर है और वो पुरुष के साए में ही महफूज है. और इसी वातावरण में वो बच्ची से बड़ी होती है और उसकी सोच भी यही बन चुकी होती है. उसके अपने भी कोई एहसास हैं और सपने हैं वो भूल  चुकी होती है. आज के समय में उसके अपनी इस सोच से बहार निकलना होगा. वह अपना सम्मान करना सीखे, खुद से प्यार करे फिर देखे कि लोग भी उसे उसी नजर से देखेंगे जो वह दूसरों से चाहती है.

# समाज और परिवार को भी नारी का सम्मान करना सीखना होगा. उसके कामों के प्रति हेय दृष्टि न रखकर आदर से देखना होगा.वह परिवार की धुरी है और इस धुरी का यदि angel बिगड़ गया तो परिवार की गति लड़खड़ा जाएगी.और फिर परिवार को सम्हालना मुश्किल हो जायेया.अतः नारी कि अहमियत को समझकर उसे सम्मान देना परिवार कर्तव्य है.  

# नारी को space दें. नारी कि privacy का सम्मान करना चाहिए और उसे space देना चाहिए. उसकी भी एक independent individuality है जैसा की किसी पुरुष की. ये बात परिवार और समाज जितना जल्दी समझेगा- वातावरण उतना ही स्वच्छ होगा. परिवार के सदस्यों में उतना ही सामंजस्य होगा और वे अपना काम स्वयं करने में और आपस में काम बाँट कर करने में ख़ुशी महसूस करेंगे. जब ये सब होगा तभी समाज से ये पूर्वाग्रह दूर होगा कि नारी केवल घर के कामों के लिए बनी है. 

अप सबसे में केवल इतना ही कहना चाहूंगी कि यदि आपके घर या आसपास का माहौल यदि ऐसा है तो नारी का सम्मान करना सीखें और इस सोच को बदलें और लोगों कि भी ऐसी सोच को बदलने की समझाइश दें. नारी कि संवेदनाएं और उसकी भावनाएं समझें.तभी एक स्वस्थ समाज और परिवार का आगाज होगा. शुरुआत कहीं से तो करनी होगी...तो क्यों न खुद से ही शुरुआत की जाये. (वीणा सेठी)

 I am joining the Ariel #ShareTheLoad campaign at BlogAdda and blogging about the prejudice related to household chores being passed on to the next generation.



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