रविवार, 6 अप्रैल 2014

nature friends contest by Kissan


 बातें याद आई उसके बचपन की

nature friends contest by Kissan ने बचपन की भूली बिसरी यादों की पोटली को एक बार फिर खोलने पर मजबूर कर दिया.
प्यारा सा बचपन  
बचपन भी एक बेंतिहाई शिद्दत से याद आने वाला यादों का वो झुरमुट है जहाँ पर जाकर हर कोई खो जाना चाहता है, खुद को बिल्कुल भूल जाना चाहता है. किसी भी इन्सान से आप पूछे की वो अपनी जिंदगी के किस मक़ाम को याद रखना चाहता है या फिर ये कि जिंदगी का कौनसा लम्हा न भूलनेवाला लगता है तो उसका एक ही जवाब होता है "बचपन". हर इन्सान आम हो या फिर ख़ास वो अपने बचपन को एक बार फिर से जीने की ख्वाहिश मन में पाले रहता है. 


क्यों याद आ गया न बचपन...?? " बचपन एक बिना तराशे हीरे की तरह है "(ऑस्टिन ऑमल )


एक और खूबसूरत बात बचपन की है वो ये की हम अपने बचपन को अपने बच्चों में तलाशते हैं. और nature friends contest by Kissan ने मौका दिया की हम अपने बचपन में झांक सके और उसे अनुभव कर सकें, बेशक अपने बच्चों के या दूसरे बच्चों के बचपन में हिस्सेदारी करके ही सही.

 nature और बचपन का आपस में एक रहस्यपूर्ण और अनोखा पर मजबूत सम्बन्ध है. दोनों की bonding देहाद सुंदर है. दोनों में एक जैसी खूबियाँ हैं, दोनों ही बेहद मासूम और कोमल हैं. कितनी सहज, सरल, निर्मल और पारदर्शी हैं इसे वही समझ सकता है जो nature के बेहद करीब रहा है और उसके संग समय बिताता है. बचपन और nature दोनों ने केवल देना सीखा है. nature ने इन्सान क्या पूरे प्राणी जगत की दिल खोलकर दिया है और बदले में कभी कुछ नहीं चाहा. वैसे ही बचपन भी केवल एक प्यारी सी मुस्कराहट सब पर नौछावर करता है और बदले में...कभी कुछ नहीं मांगता. दोनों इतने कोमल हैं कि केवल दुलार चाहते हैं. 

बचपन जब भी nature के साथ होता है तो ऐसा लगता है मानों प्रकृति याने nature में एक अनोखा संगीत रच-बस गया है. और इसे केवल वही सुन सकता है जो मन से, आत्मा से पारदर्शी, सजह व सरल हो. प्रकृति या nature से ये मै तब सीख पाई जब मेरी दीदी की बेटी दिशा कुछ समय के लिए... यही कोई 4-5 महीने के लिए हमारे साथ रहने आई.


 दिशा का  बचपन और उसके मासूम सवाल
प्रकृति और पशुओं का बचपन से गहरा नाता है. मेरी दीदी  की छोटी बेटी दिशा के बचपन को मैंने बेहद नजदीक से देखा है और घर में सब कहते भी हैं कि वो मेरे बचपन की कार्बन कापी है. मेरा उससे ख़ास लगाव रहा है- शायद इसलिए कि उसके और मेरे nature में काफी समानताएं है. दिशा बेहद छोटी लगभग3 साल या उससे कुछ ही बड़ी थी जब कुछ समय 4 या 5 महीने हमारे साथ रही थी तब उसके बचपन की मै गवाह रही हूँ. 




मासूम दिशा
 
आज इतने सालों बाद दिशा के बचपन की बातें कर रही हूँ तो लग रहा है मानों कल की ही बात है.बीता हुआ कल कितना भी पुराना हो जब उसे पलटकर देखते हैं तो लगता है कि अभी कुछ देर पहले ही हमारे पास से गुजर गया है...


क्या आपको भी ऐसा ही लगता हैं ना...?? मैंने शायद आपको आपके बचपन में ले जाने की हिमाकत कर दी है ...सॉरी ...आपको शायद आपको भी अच्छा लग रहा होगा...?? है ना ...!!

दिशा का दुलार 


दिशा बचपन में बेहद शरारती थी, अभी भी है...मुझे तो ऐसा ही लगता है ...! खैर... दिशा बिलकुल डॉल सी दिखती थी; प्यारी सी बेबी डॉल... जो भी उसे देखता उसे हग जरुर करना चाहता. वो बेहद प्यारी बातें करती थी- उसकी तोतली बातें दिनभर की थकान दूर कर देतीं थी.उसके सवाल भी ऐसे रहा करते थे; जो कोई भी सुनता तो लाजवाब हो जाता था और जवाब देना मुश्किल हो जाया करता था और सवालों के जवाब ढूंढने के लिए कोई कोना तलाशना पड़ता था. ये और बात है कि वो अपने सवालों से दूसरों को ये सोचने को मजबूर कर देती थी कि आखिकार इसके दिमाग में ये सवाल आते कहाँ से हैं...??

हमारे घर के पिछले आँगन में काफी पेड़-पौधे गमलों में और जमीन में लगा रखे था और सामने काफी अच्छा बगीचा लगा रखा था. मुझे पेड़-पौधें लगाने का काफी शौक है, प्रकृति से मेरा लगाव शायद बचपन से ही पड़ गया था और अब तो ये शौक पैशन बन गया है.

फूलों से प्यार करती दिशा


प्रायः सुबह और शाम जब मै पौधों में पानी डाला करती थी तब दिशा आसपास दी डोलती रहती थी और अपने सवालों से मुझे घेरे रहती थी. उसे तितलियों से खासा लगाव था और जब भी तितलियाँ पौधों के आसपास मंडराया करती तब वह उन्हें पकड़ने की नाकामयाब कोशिश करती.


वो फरवरी का महिना था और ठण्ड  भी थोड़ी कम हो चली थी. बसन्त का आगमन लगभग पास ही था. बसन्त के आते ही फूलों की बाहर अपने पूरे उफान पर होती है और ऐसे में माहौल काफी खुशनुमा हो जाता है और किसी भी इन्सान का मन एक अजीब सी ख़ुशी से भरा रहता है; शायद प्रकृति इन्सान को ये उपहार सदियों से देती आई है पर इन्सान उसके इस अनमोल भेट के काबिल नहीं... तभी तो इन्सान अपने मतलब के लिए प्रकृति जैसी  माँ को नोचने-खसोटने में लगा है... आपको लग रहा होगा मै विषय से भटक रही हूँ...! पर नहीं...! मै हकीकत बयां कर रही हूँ. आप इससे सहमत हो या न हों... ये आपकी मर्जी...!

हाँ ...तो  ऐसे ही एक दिन जब मै गमलों को पानी दे रही थी तब दिशा मेरे पास ही खड़ी थी, अचानक मोरपंखी रंग की बेहद सुन्दर तितली फूलों के पौधों पर मंडराने लगी. कभी वह एक गमलें के फूलों पर मंडराती रहती तो कभी दूसरे पर. उसका एक गमले से दूसरे गमले पर उड़ना दिशा को बेहद अच्छा लग रहा था. थोड़ी ही देर में एक और पीले रंग की तितली जिसके पंखों पर काले धब्बे पड़े थे आकर पहली तितली का साथ देने लगी. प्रकृति कितनी सुन्दर है ...और हम हैं कि उसे ख़त्म करने में लगे हैं. इसी तरह के विचार मन में उमड़-घुमड़ रहे थे की अचानक दिशा की तोतली आवाज ने मेरा ध्यान खीच लिया. 

 
वह मेरी कमीज का सिरा पकड़कर खिंच रही थी और पूछ रही थी." माछी  (मौसी ) ये का उल रा है...?
"ये तितली है दिशा ..." मैंने उसे बताया. मुझे पता था कि अब उसके न ख़त्म होने वाले सवालों का सिलसिला चल निकलेगा.


"ये उलती कैछे है ...? उसने दूसरा सवाल दागा. तब बताया कि उसके पंखों के सहारे वो उडती है. अब मै अगले सवाल का इंतजार करने लगी और जल्दी ही उसने अगला प्रश्न मेरी ओर उछाला .


" ये फूल पर क्यों उल रई है ...?" जिसका जवाब मैंने दिया कि फूलों का रस चूसने के लिए. पर वो उसका रस क्यों चूसती है तो जवाब था कि उसे भूख लगती है इसलिए. उसे तितली का  पूरी लाइफ स्केच समझाना पड़ा. पर उसके एक सवाल ने मुझे speechless कर दिया. 


"ये पैदा कैसे होती है ...?" और मै उसका जवाब दे सकूं उसके पहले ही कुछ सोचते हुए वह मुझसे पूछ बैठी , "माछी ...! मै कैछे  पैदा हुई ..." मैंने थोड़ी देर के लिए चुप  रह गई; कुछ कहते न बना तो उसके इस मासूम सवाल का एक ही उतर दे पाई की हम सब भगवान के घर से आते हैं. उसने धीरे से अपना सिर हिलाया मानों समझ आ गया और मैंने चैन की साँस ली. जब उसे  बताया कि अगर तितली को पकड़ेंगे तो वह मर जाएगी और उसके मम्मी-पापा बेहद रोयेंगे. "ऐछा" कहकर वह पीछे हट गई और मैंने उसे समझाया की हमें फूलों को और तितलियों को छूना नहीं चाहिए नहीं तो वो नाराज हो जाते हैं. उसने इस तरह से सिर हिलाया मानों सब कुछ समझ आ गया और उसकी मासूम सहमती से मेरी हंसी निकल गई.
 


वह अपने सवालों को भूलकर तितलियों के पीछे दौड़ने लगी. सुबह का समय था, चूकी बीते रात बारिश हुई थी इसलिए पत्तों पर ओस चमक रही थी. किसी किसी पते से ओस की बूंदे टपक रही थी. मुझे ओस की बूंदे बेहद अच्छी लगती हैं, इसलिए मै गिरती बूंदों को अपनी हथेली में समेट रही थी. मुझे ऐसा करते देख उसने मुझसे कहा," क्या मै भी ऐछा करूँ ...? मैंने सहमती से सिर हिलाया.ओस की बूंद को अपने हाथ में लेकर वो खुश हो गई. उसके प्यारे से मासूम चहरे की ख़ुशी कितनी उज्जवल थी कि मै उसका चेहरा देखती रह गई. अब उसके ओस के सवाल कैसे हो सकते होंगे...? आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं.

 दिशा कि शरारत


उसे प्रकृति के नजदीक के नजदीक ले जाने का मुझे प्रयास नहीं करना पड़ता था. एक दिन बादल आसमान में देखकर पूछने लगी की ये क्या है ...? तो उसके सवालों के जवाब में मुझे यही ठीक लगा की उसकी जिज्ञासा उसके मासूम दिमाग के हिसाब से ही दिए जाएँ और यही सोचकर मै थोड़ी सी रुई ले आई और जिसे देखकर वो तुरंत बोली," अरे माछी ...! ये तो लुइ उल लई है." जवाब में मैंने हाँ में सिर हिला दिया.

दिशा के nature के काफी करीब जाने के मौकों ने उसे एक प्रकृति प्रेमी बना दिया है. अब जब भी उसे फुरसत मिलती है वो अपना कैमरा उठा कर प्रकृति की हलचलों के पलों को कैद करने निकल जाती है.


 tom  stoppard से मै सहमत हूँ और उन्होंने क्या खूब कहा है," यदि हम  अपना बचपन अपने साथ रखते हैं तो  हम कभी भी बूढ़े नहीं होंगे".
और अंत में मै इतना ही कहना चाहूंगी कि किसी भी मासूम बचपन को कभी भी कोई पीड़ा न पहुचाएं  वे भी nature की तरह कोमल और निर्मल होते हैं.

वो मासूमियत उसके चहरे की ,
मुझे मेरा बचपन याद दिला गई,
अब मै हूँ कि
उसी में अपना बचपन ढूंढता हूँ.( वीणा सेठी)


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